Third Eye Cultural School
Tuesday, August 19, 2025
डॉ. नारायण भारती ने सिंधी लोकगीतों को विभिन्न बोलियों को ध्यान में रखते हुए विभाजित किया है: सिरेली, विचोली, लाडी, थारी, कच्छी, लस्सी। उन्होंने सिंधी लोकगीतों के प्रकारों पर एक विस्तृत वर्गीकरण भी प्रदान किया है, जैसे लाडा, लोलियूं, सखियां, छल्ला, शब्द, पूजा गीत, आदि।2 डॉ. नबी बख्श बलूच 50 से अधिक प्रकार के सिंधी लोकगीतों की एक और भी लंबी सूची प्रदान करते हैं। अलका पांडे पंजाबी लोकगीत के छह श्रेणियों में रखती हैं: जीवनचक्र गीत, ऋतु गीत , व्यवसाय गीत, त्योहार गीत ,भक्ति गीत ,और प्रेम गीत, गाथागीत और बच्चों के गीत शामिल हैं
innovations are happening to repackage styles of Indian Classical
Saturday, January 25, 2025
Wednesday, December 8, 2021
हिंदू पंचांग के देसी महीने
Chaitra चैत्र / चैत = M a r c h -April.
Vaisakha वैशाख / बैसाख = April-M a y
Jyeshta ज्येष्ठ / जेठ — May-June.
Ashadh आषाढ़ / आसाढ़ = June-July.
Shravan श्रावण / सावन = July-August.
Bhadrapad भाद्रपद / भादों= August-Sept
Ashvin अश्विन
/ क्वार =. September-Oct..
Kirtik कार्तिक
/ कातिक =
October-November
MSrgashlrsha मार्गशीर्ष = Nov .-Dec .
Pousha पौष
/ पूस-
December-January
Magh माघ
- January-February..
Phalgun फाल्गुन
/ फागुन - February-March
कश्मीरी वाद्य यंत्र
तुम्बकनार' एक प्राचीन कश्मीरी वाद्य यंत्र होता है, जिसे कश्मीरी संगीत कार्यक्रमों , विशेष कर विवाह जैसे कार्यक्रमों में बजाया जाता है। माना जाता है कि
इसका उद्गम स्थान ईरान और मध्य एशिया है ईरान में ये वाद्ययंत्र लकड़ी का बना होता
है, जबकि कश्मीर में यह शुरू से मिट्टी से ही बनता है। इसके ऊपरी सतह को,
जो काफ़ी हद तक तबले के जैसा होता है, हाथ की
उँगलियों से थपथपा कर ध्वनि उत्पन्न की जाती है। हालाँकि इस से तबले से अलग ही प्रकार
का संगीत तैयार होता है
'नुट' वाद्ययंत्र मिट्टी का एक
मटका होता है, लेकिन इसकी बनावट आम मटकों से कुछ अलग होती
है। इसकी गर्दन लंबी होती है।, जिसका इस्तेमाल कश्मीरी सूफ़ी
संगीत कार्यक्रमों में अक्सर होता है। कश्मीर में ही एक नुट ताम्बे का भी होता है
जिन्हें शादी के मौकों पर रिंग से बजाते हैं।
संतूर का भारतीय नाम था शततंत्री वीणा यानी सौ तारों वाली वीणा जिसे
बाद में फ़ारसी भाषा से संतूर नाम मिला। यह एक अनोखा वाद्य है जो कि तार का साज़
होने के बावजूद लकड़ी की छोटी छड़ों से बजाया जाता है।संतूर की उत्पत्ती लगभग 1800
वर्षों से भी पूर्व ईरान में मानी जाती है बाद में यह एशिया के कई अन्य देशों में
प्रचलित हुआ
सिखों द्वारा इस्तेमाल किया गया पहला इंस्ट्रुमेंट
रबाब सिखों द्वारा यूज किया गया पहला इंस्ट्रुमेंट था। इसे भाई
मर्दाना ने यूज किया था जो कि गुरु नानक के साथी थे। वह ‘रबाबी’ रूप में जाने जाते
थे। रबाब को बजाने की परंपरा ‘नामधारी’ जैसे सिखों ने जारी रखी।
रबाब अफगानिस्तान का नैशनल म्यूजिक इंस्ट्रुमेंट है। रबाब की उत्पत्ति
7वीं सदी में हुई और इसकी जड़ें मध्य अफगानिस्तान में मिलती हैं। इसे ‘काबुली
रबाब’ भी कहते हैं। काबुली रबाब दिखने में भारतीय रबाब से जरा सा अलग होता है।
जम्मू और कश्मीर में सुरनाई---Material: लकड़ी
सुरनाई दो शब्दों सुर और नई का संयोजन है, सुर का अर्थ संगीत सुर और नाई का अर्थ बाँसुरी है। यह वाद्य यंत्र खोखली लकड़ी के टुकड़े में छिद्र करके बनाया जाता है। निचले हिस्से में घंटी के आकार के मुँह के साथ १८ इंच लंबी एक लकड़ी की नली होती है। इसमें सात निर्गम छिद्र और एक बजाने वाला छिद्र होता है। सुरनाई को गेहूँ की घास की पत्ती के साथ दाँतों के बीच रखा जाता है
हिमाचल प्रदेश में सुरनाई----Material: लकड़ी,
धातु
एक लकड़ी की नली जिसमें एक सीधा छिद्र और कीप के आकार की घंटी होती
है। सात उंगली के छिद्र और एक अंगूठे का छिद्र होता है। दोहरी कंपिका के साथ धातु
की टोंटी होती है। शुभ, सामाजिक और धार्मिक समारोहों में उपयोग किया जाता है।
ताशा लकड़ी, धातु, पीतल, चमड़े, कपड़े और चर्मपत्र से बना एक ताल वाद्य यंत्र
है। जो मुख्य रूप से जम्मू और कश्मीर तथा उत्तर भारत के अनेक हिस्सों में भी पाया
जाता है।
जम्मू और कश्मीर में ताशा
एक उथला चिकनी मिट्टी का बर्तन। चौड़ा सिरा चर्म से ढका होता है, नीचे कुंडे से चमड़े की पट्टियों द्वारा बाँधा जाता है। बजाते समय, गर्दन से लटकाकर दो छड़ियों के साथ बजाया जाता है।